गीता जयंती के शुभ अवसर पर
आज के पावन दिन पर, हम भगवद् गीता की महानता और उसके अध्यात्मिक महत्व को स्मरण करते हैं। नीचे प्रस्तुत पाठ वराह पुराण से उद्धृत है, जिसमें पृथ्वी और भगवान विष्णु के बीच गीता के महत्व पर संवाद होता है। आइए इसे शुद्ध आध्यात्मिक तरीके से समझें और अपने हृदय में गीता के संदेश को आत्मसात करें।
धरौवाच:
भगवान् परमेशान् भक्तिरव्यभिचारिणी;
प्रारब्धं भुज्यमानस्य कथं भवति हे प्रभो।
अर्थ:
पृथ्वी ने कहा:
हे भगवान्! हे परमेश्वर! प्रारब्ध कर्मों का अनुभव करते हुए भी, अव्यभिचारिणी भक्ति कैसे उत्पन्न हो सकती है, हे प्रभु?
श्री विष्णुरुवाच:
प्रारब्धं भुज्यमानो हि गीताभ्यासरतः सदा;
स मुक्तः स सुखी लोके कर्मणा नोपलिप्यते॥
अर्थ:
भगवान् विष्णु ने कहा:
जो प्रारब्ध कर्म करते हुए भी सदा गीता का अभ्यास में लीन रहता है, वह मुक्त हो जाता है। वह संसार में सुखी होता है और कर्मों से बंधा नहीं रहता।
महापापादिपापानि गीताध्यानं करोति चेत्;
क्वचित् स्पर्शं न कुर्वन्ति नलिनीदलमम्बुवत्॥
अर्थ:
यदि कोई व्यक्ति गीता का ध्यान करता है, तो उसके महान पाप भी कम हो जाते हैं। जैसे जल कमल के पत्ते को प्रभावित नहीं करता, वैसे ही पाप उसे स्पर्श नहीं कर पाते।
गीतायाः पुस्तकं यत्र यत्र पाठः प्रवर्तते;
तत्र सर्वाणि तीर्थानि प्रयागादीनि तत्र वै॥
अर्थ:
जहाँ-जहाँ गीता का पाठ होता है और गीता का पुस्तक मौजूद होता है, वहाँ- वहाँ सभी तीर्थ स्थान जैसे प्रयाग आदि आत्मिक रूप से उपस्थित होते हैं।
सर्वे देवाश्च ऋषयः योगिनः पन्नगाश्च ये;
गोपालाः गोपिका वापि नारदोद्धवपार्षदैः॥
अर्थ:
जहाँ गीता का पाठ होता है, वहाँ सभी देवता, ऋषि, योगी, नाग, गोपाल, गोपिकाएँ, नारद, उद्धव और अन्य पार्षद निवास करते हैं।
सहायो जायते शीघ्रं यत्र गीता प्रवर्तते;
यत्र गीताविचारश्च पाठनं पाठनं श्रुतम्;
तत्राहं निश्चितं पृथ्वी निवसामि सदैव हि॥
अर्थ:
जहाँ गीता का प्रवर्तन होता है और उसका विचार, पाठन, श्रवण होता है, वहाँ सहायता शीघ्र प्राप्त होती है। वहाँ मैं निश्चित रूप से सदैव पृथ्वी पर निवास करता हूँ।
गीताश्रयेऽहं तिष्ठामि गीता मे चोत्तमं गृहं;
गीता ज्ञानमुपाश्रित्य त्रीन् लोकान् पालयाम्यहम्॥
अर्थ:
मैं गीता को अपना आश्रय और सर्वोत्तम गृह मानता हूँ। गीता के ज्ञान से मैं तीनों लोकों का पालन करता हूँ।
गीता मे परमा विद्या ब्रह्मरूपा न संशयः;
अर्धमात्राक्षरा नित्या स्वानिर्वाच्यपदात्मिका॥
अर्थ:
गीता मेरी सर्वोच्च विद्या है, जो ब्रह्मस्वरूप है। यह अर्धमात्राक्षर (प्रणव ओम) की नित्य और अवर्णनीय स्वरूप वाली है।
चिदानन्देन कृष्णेन प्रोक्ता स्वमुखतोऽर्जुन;
वेदत्रयी परानंदा तत्वार्थज्ञानसंयुता॥
अर्थ:
भगवान् कृष्ण ने अपने मुख से अर्जुन को गीता का उपदेश दिया। यह वेदों का सार, आनंद और तत्वज्ञान से युक्त है।
योऽष्टादश जपेन नित्यं नरो निश्चलमानसः;
ज्ञानसिद्धिं स लभते ततो याति परं पदम्॥
अर्थ:
जो व्यक्ति स्थिर चित्त होकर गीता के अठारह अध्यायों का नित्य पाठ करता है, वह ज्ञान सिद्धि प्राप्त करता है और परम पद को प्राप्त होता है।
पाठेऽसमर्थः संपूर्णं ततोऽर्धं पाठमाचरेत्;
तदा गोदानजं पुण्यं लभते नात्र संशयः॥
अर्थ:
यदि पूर्ण पाठ संभव न हो, तो आधे का पाठ करना चाहिए। इससे गोदान के समान पुण्य प्राप्त होता है, इसमें कोई संशय नहीं।
त्रिभागं पठमानस्तु गंगास्नानफलं लभेत्;
षडंशं जपमानस्तु सोमयागफलं लभेत्॥
अर्थ:
जो गीता का एक-तिहाई भाग पढ़ता है, उसे गंगा स्नान का फल प्राप्त होता है। जो छठवां भाग जपता है, उसे सोम यज्ञ का फल मिलता है।
अध्यायं श्लोकपादं वा नित्यं यः पठते नरः;
स याति नरतां यावन्मन्वंतरं वसुंधरे॥
अर्थ:
जो व्यक्ति नित्य एक अध्याय, श्लोक या उसका भाग पढ़ता है, वह संपूर्ण मन्वंतर तक मनुष्य योनि में बना रहता है।
गीता अभ्यासस्मृत्या मृतो मानुषतां व्रजेत्;
गीता अभ्यास पुनः कृत्वा लभते मुक्ति उत्तमाम्॥
अर्थ:
गीता का अभ्यास करने वाला मनुष्य मृत्यु के बाद पुनः मनुष्य योनि में जन्म लेता है और अभ्यास से उत्तम मुक्ति प्राप्त करता है।
गीता ज्ञान ध्यायमानः महापापयुतोऽपि वा;
वैष्णव लोकं समाप्नोति विष्णुना सह मोदते॥
अर्थ:
जो व्यक्ति गीता के अर्थ का ध्यान करता है, वह चाहे महापापी भी क्यों न हो, वह वैष्णव लोक प्राप्त करता है और भगवान विष्णु के साथ आनंदित होता है।
गीताार्थं ध्यायते नित्यं कृत्वा कर्माणि भूर्षः;
जीवनमुक्तः स विजनेयो देहान्ते परमान् पदम्॥
अर्थ:
जो व्यक्ति गीता के अर्थ पर नित्य ध्यान करता है और अनेक पुण्य कर्म करता है, वह जीवनमुक्त कहलाता है और देहान्त में परम पद प्राप्त करता है।
गीतां आश्रित्य बहवो भूजो जनकादयः;
निर्धूतकल्मशा लोके गीता याताः परम पदम्॥
अर्थ:
इस संसार में, गीता का आश्रय लेकर कई राजा जैसे जनक और अन्य लोग परम पद प्राप्त हुए हैं, जो सभी पापों से शुद्ध हो गए हैं।
गीतायाः पाठनं कृत्वा महात्म्यं नैव यः पठेत्;
वृिठा पाठो भवेत् तस्य श्रम एव ह्युदाहृतः॥
अर्थ:
जो व्यक्ति गीता का पाठ करता है लेकिन "गीता महात्म्य" नहीं पढ़ता, वह लाभ नहीं प्राप्त करता। केवल प्रयास ही शेष रहता है।
एतान्महात्म्यासम्युक्तं गीता अभ्यास करोति यः;
स तत् फलमवाप्नोति दुर्लभाम् गतिम् आप्नुयात्॥
अर्थ:
जो व्यक्ति गीता के महात्म्य के साथ गीता का अभ्यास करता है, वह उपर्युक्त फलों को प्राप्त करता है और जो गतिम् (उच्चतम स्थिति) प्राप्त करना कठिन है, उसे प्राप्त करता है।
सुत उवाच:
महात्म्यम् एतद् गीतेयाः मया प्रोक्तम् सनातनम््;
गीतेऽन्ते च पठेद्यस्तु यदुक्तं तत्तफलम् लभेत्॥
अर्थ:
सुत ने कहा:
इस महात्म्य या "गीता की महिमा", जो सनातन है, मैंने आपको बताई है। गीता के अंत में जो भी कहा गया है, वह फल प्राप्त होता है।
इस प्रकार वराह पुराण में वर्णित "गीता महात्म्य" समाप्त होता है।
ॐ शांति, शांति, शांति।
गीता जयंती की हार्दिक शुभकामनाएँ!
आईए हम सभी भगवद् गीता के संदेश को अपने जीवन में आत्मसात करें और उसे अपने आध्यात्मिक मार्गदर्शक के रूप में अपनाएं।
जय श्री कृष्ण!